Kiran Mishra

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लेखनी कहानी -01-Jul-2023

कई दिनों तक चुल्हा रोया-

कई दिनों तक चुल्हा रोया

चक्की रही उदास

सुधबुध था न कहीं किसी को

रोके बैठे सांस

अनहोनी थी बहुत बड़ी

सबको ही था आभास

अपनी-अपनी जुगत लगी थी

रुके ये किसी प्रयास

धधक रही थी धरती और

कंठ हलक में आये

खाने-पीने की फिकर नहीं

सभी दिखे असहाय

कोई कोना छुटा नहीं था

जहाँ कालिमा न साये

हंसते-खेलते घर में जाने

कहाँ से मातम छाये

कोई आकर पूछ रहा था

कानाफूसी झोक रहा था

अपने-अपने ढंग से सब ही

टूटा दर्पण देख रहा था

घर के सभी जनों का मानो

समय परीक्षा ले रहा था

आंगन फैले शीत उठाकर

आंखें तक को धुल रहा था।

किरण मिश्रा #निधि#

आधे-अधूरे मिसरे/प्रसिद्ध पंक्तियाँ

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3 Comments

अदिति झा

17-Jul-2023 12:20 AM

Nice 👍🏼

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खूबसूरत भाव और सुंदर शब्द संयोजन

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Reena yadav

06-Jul-2023 11:22 PM

👍👍

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